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September 25, 2025

 परमार्थ और कर्म पर विचार
"परिवर्तन को समभाव से स्वीकार करें, और जो भी कर्तव्य आपके सामने आएं, उन्हें दिव्य स्वतंत्रता की भावना से निभाएं। आप कर्ता नहीं हैं, बल्कि वे हैं"।


इसका अर्थ है कि हमें बदलाव को शांतिपूर्ण मन से स्वीकार करना चाहिए।
जो भी जिम्मेदारियां हमारे सामने आती हैं, उन्हें ईश्वर की इच्छा मानकर पूरा करना चाहिए।
हमें यह समझना चाहिए कि हम सिर्फ साधन हैं और ईश्वर ही असली कर्ता है।

 परमार्थ और कर्म पर विचार
"परिवर्तन को समभाव से स्वीकार करें, और जो भी कर्तव्य आपके सामने आएं, उन्हें दिव्य स्वतंत्रता की भावना से निभाएं। आप कर्ता नहीं हैं, बल्कि वे हैं"।

  • इसका अर्थ है कि हमें बदलाव को शांतिपूर्ण मन से स्वीकार करना चाहिए।
  • जो भी जिम्मेदारियां हमारे सामने आती हैं, उन्हें ईश्वर की इच्छा मानकर पूरा करना चाहिए।
  • हमें यह समझना चाहिए कि हम सिर्फ साधन हैं और ईश्वर ही असली कर्ता है।