माँ कामाख्या का उद्गम
श और शव क कथा के अनुसार, सती माता (हमालय क पुत्री और भगवान शव क अधागनी) ने अपने पता
राजा दक्ष के यज्ञ म अपमानत होकर आत्मदाह कर लया।
जब भगवान शव ने सती का जला हुआ शरीर उठाकर तांडव करना प्रारंभ कया, तब सृ का संतुलन बगड़ गया।
तभी भगवान वष्णु ने सुदशन चक्र से सती माता के शरीर के 51 (या 52) अंग अलग-अलग ान पर गराए। जहाँ
जहाँ सती के अंग गरे, वहाँ-वहाँ श पीठ ापत हुए।
माँ कामाख्या का मं दर (गुवाहाट, असम के नीलांचल पवत पर त) वही ान है जहाँ माता का योनभाग गरा
था। इसे सवश्रेष्ठ और अत्यंत गुप्त श पीठ माना जाता है।
माँ कामाख्या मं दर (असम) का महत्व
यहाँ माँ कामाख्या को "कामरूपी देवी" भी कहा जाता है।
मं दर म देवी के योनकुंड क पूजा होती है, जो रजस्वला (ऋतु काल) म हर वष कुछ दन के लए लाल वस्त्र से ढका रहता है।
इस दौरान मं दर बंद कर दया जाता है और चौथे दन भव्य उत्सव "अंबुबाची मेला" मनाया जाता है।
माँ कामाख्या मं दर (असम) का महत्व
असम राज्य क राजधानी गुवाहाट म नीलांचल पवत पर त है।
यह 51/52 श पीठ म प्रमुखतम और सवश्रेष्ठ माना जाता ह
असम का भौगोलक परचय
स्थान : भारत के उत्तर-पूव भाग म स्थत है।
राजधानी : दसपुर (गुवाहाट सबसे बड़ा शहर)।
क्षेत्रफल : लगभग 78,438 वग कमी। सीमा :उत्तर म अरुणाचल प्रदेश, भूटान पूव म नागालड और मणपुर दक्षण म
मजोरम और त्रपुराप म म प म बंगाल व बांग्लादेश मुख्य नद : ब्रह्मपुत्र नद (यहाँ क जीवनरेखा)। प्राकृ तक वशेषताएँ
:हरे-भरे चाय बागान काज़ीरंगा और मानस रा ीय उद्यान (यूनेस्को वश्व धरोहर स्थल) घने वन और समृद्ध जैव-ववधता।
असम का इतहास
प्राचीन काल महाभारत म इसे प्राग्ज्योतषपुर कहा गया है। राजा भगदत्त (भीमसेन से युद्ध करने वाला) यह का था।
मध्यकाल कामरूप सा ाज्य (4व–12व शताब्द) यहाँ प्रसद्ध था। अहोम राजवंश (1228 से लगभग 600 वष तक) ने
असम पर शासन कया।अहोम राजाओं ने मुग़ल को कई बार हराया ब्रटश काल 1826 क यांडाबू संध के बाद असम
ब्रटश भारत का हस्सा बना।यहाँ के चाय उद्योग ने ब्रटश को बहुत लाभ पहुँचाया।स्वतंत्रता सं ाम :असम के वीर ने
आज़ाद क लड़ाई म स य भाग लया।
असम का राजनीतक पक
भारत का राज्य : 26 जनवरी 1950 को असम भारत का पूण राज्य बना।
वधानसभा :126 सदस्यीय। लोकसभा सीट : 14 राज्यसभा सीट : 7
राजनीतक दल : भारतीय जनता पाट (BJP), कां ेस (INC), असम गण परषद (AGP) आद। महत्व :
पूवत्तर भारत का प्रवेश ार। अंतरा ीय सीमाओं से जुड़ा होने के कारण सामरक दृ से महत्वपूण।
धामक और सांस्कृ तक महत्व
मुख्य धम : हदू धम, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध और अन्य। प्रसद्ध मं दर और धामक स्थल :
कामाख्या मं दर (गुवाहाट) – श पीठउमानंद मं दर – ब्रह्मपुत्र नद के बीच हाय व माधव मं दर (हाजो)
त्योहार :बीहू (मुख्य त्योहार – खेती और फसल से जुड़ा) दुगा पूजा अंबुबाची मेला (कामाख्या मं दर)
वशेषता : असम क संस्कृ त म आय, मंगोल, बम और आदवासी परंपराओं का सुंदर मश्रण है।
ामाजक और जनजीवन
जनसंख्या : लगभग 3.5 करोड़ (2021 अनुमान)। भाषा असमया (राजभाषा) बंगाली, हद, बोडो और अन्य आदवासी
भाषाएँ।
समाज यहाँ वभन्न जनजातयाँ (बोडो, मशग, काब, राभा आद) रहती ह। चाय बागान म काम करने वाले मजदूर भी
सामाजक जीवन का बड़ा हस्सा ह।
लोककला और संगीत : बहू नृत्य और बहू गीत प्रसद्ध। शंख, ढोल, पेपा जैसे वाद्ययंत्र।अथव्यवस्था :चाय उत
यज्ञ का रहस्य और यज्ञ क्य कया जाता ह
यज्ञ का रहस्य यज्ञ केवल अग्न म आहुत डालना ही नह है, बल्क यह आध्यात्मक, सामाजक और प्राकृ तक संतुलन का प्रतीक है।
‘यज्ञ’ शब्द संस्कृत के ‘यज्’ धातु से बना है, जसका अथ है – पूजा करना, दान देना और संगत रखना।
यज्ञ का रहस्य यह है क मनुष्य अपनी अहंकार, लोभ और स्वाथ क आहुत अग्न म अपत कर, शुद्धता, त्याग और
समपण क भावना को जागृत करता है।
यज्ञ को देवताओं से संवाद और प्राणय के कल्याण का माध्यम माना जाता है।
यज्ञ क्य कया जाता है प्राकृ तक शुद्ध के लए – यज्ञ से वातावरण म मौजूद हानकारक कटाणु, जीवाणु और प्रदूषण कम होते ह।
मानसक शांत के लए – मंत्रो ारण और अग्नहोत्र से मन म सकारात्मक ऊजा उत्पन्न होती है।
दैवी कृपा प्राप्त करने के लए – देवताओं क कृपा से जीवन म सुख-समृद्ध आती है।
सामाजक एकता के लए – यज्ञ म सब मलकर भाग लेते ह, जससे सहयोग और एकता क भावना बढ़ती है।
धामक और आध्यात्मक उ ान के लए – यह आत्मा क शुद्ध और परमात्मा से जुड़ने का श्रेष्ठ माग है।
आरोग्यता हेतु – हवन साम ी और जड़ी-बू टयाँ अग्न म आहुत देकर वातावरण को औषधीय बनाती ह,
जससे स्वास्थ्य म लाभ होता है।संतुलन के लए – यज्ञ पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्न, वायु, आकाश) के बीच सामंजस्य ापत करता है।
यज्ञ का प्रभाव :-
यज्ञ केवल धामक अनु ान नह है, ब क इसका गहरा आध्या मक, वैज्ञानक और सामाजक प्रभाव भी होता है।
1. आध्यात्मक प्रभाव
यज्ञ से मन और आत्मा शुद्ध होती है।
आहुत के साथ नकारात्मक वचार, ोध, ईया और लोभ क अन म आहुत देकर शांत और संतोष क प्राप्त होती है।
साधक का मन ईश्वर क ओर क त होकर भक्त और ध्यान म र होता है।
2. धामक प्रभाव
यज्ञ देवताओं क आराधना का माध्यम है।
इससे दैवी कृपा और आशीवाद प्राप्त होता है।
धम ंथ के अनुसार यज्ञ करने से पाप का नाश और पुण्य क वृद्ध होती है।
3. सामाजक प्रभाव
यज्ञ सामू हक रूप से कया जाता है, जससे एकता, सहयोग और स ावना बढ़ती है।
यह लोग को दान, सेवा और समपण क श ा देता है।
समाज म सकारात्मक वातावरण और सदाचार क भावना मजबूत होती है।
4. पयावरणीय प्रभाव
यज्ञ म डाली गई हवन साम ी (जैसे जड़ी-बू टयाँ, घी, लकड़ी आद) जलकर वातावरण को शुद्ध करती ह।
यज्ञ से वायु म मौजूद हानकारक जीवाणु नष्ट होते ह और वातावरण म औषधीय गुण फैलते ह।
इससे वातावरण प्रदूषण मुक्त और पवत्र बनता है।
5. मानसक और शारीरक प्रभाव
मंत्रो ारण और ध्वन तरंग से तनाव, चता और अवसाद दूर होते ह।
यज्ञ क ध्वन ऊजा से मन म सकारात्मकता और आत्मवश्वास बढ़ता है।
औषधीय धुएँ से स्वास्थ्य लाभ होता है और रोग से बचाव मलता है।
सबसे पहले यज्ञ का वस्तार (प्रथम यज्ञ का वणन)
1. प्रथम यज्ञ का उल्लेख
ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण म बताया गया है क सृ का आरंभ स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञ के ारा कया था।
इसलए सबसे पहला यज्ञ ब्रह्मा ारा सम्पन्न माना जाता है।
2. ऋषय ारा प्रथम यज्ञ
मनुष्य म सबसे पहले यज्ञ का अनुष्ठान ऋष प्रजापत (स्वयंभू मनु) और सप्तऋषय ारा कया गया।
वशेष रूप से महष अंगरा, महष भृगु और महष वशष्ठ को यज्ञ परंपरा के प्रणेता माना जाता है।
महष अंगरा को अग्नहोत्र और हवन वध का प्रथम प्रवतक माना जाता है।
3. पुराण के अनुसार
वष्णु पुराण और भागवत पुराण म वणन है क महष कश्यप ने यज्ञ को व्यव त रूप दया।
इसी कारण उन्ह "यज्ञ का आचाय" कहा गया।
4. सृ का प्रथम यज्ञ ब्रह्मा ारा कया गया।
मनुष्य और ऋषय म यज्ञ परंपरा को सबसे पहले महष अंगरा, भृगु और वशष्ठ ने प्रारंभ कया।
बाद म महष कश्यप और अन्य सप्तऋषय ने इसे समाज म ापत कया।
श्री लक्ष्मी नारायण यज्ञ का महत्व, कारण और उ ेश्य :-
लक्ष्मी नारायण यज्ञ एक वशेष धामक अनु ान है, जो भगवान वष्णु (नारायण) और माता लक्ष्मी क कृपा प्राप्त करने के लए कया जाता है।
यह यज्ञ जीवन म सुख, शांत, समृद्ध और परवार म स ाव लाने वाला माना जाता है।
लक्ष्मी नारायण यज्ञ क्य कया जाता है?
सुख-समृद्ध के लए – माता लक्ष्मी धन, ऐश्वय और समृद्ध क देवी ह। यह यज्ञ करने से आथक त मजबूत होती है।
शांत और स ाव के लए – भगवान वष्णु (नारायण) पालनहार ह। उनके आशीवाद से परवार म शांत, प्रेम और एकता बनी रहती है।
ऋण मुक्त हेतु – कहा जाता है क इस यज्ञ से पाप का नाश होता है और मनुष्य क से मुक्त होता है।
आथक वृद्ध के लए – व्यापार, नौकरी और आथक क्षेत्र म उन्नत होती है।
परवार क रक्षा हेतु – लक्ष्मी नारायण क कृपा से परवार पर आने वाले संकट और नकारात्मक शक्तयाँ दूर होती ह।
लक्ष्मी नारायण यज्ञ का उ ेश्य
आध्यात्मक उ ेश्य – ईश्वर के साथ आत्मा का संबंध प्रगाढ़ करना, पाप का शमन करना और मोक्ष क प्राप्त क ओर अग्रसर होना।
धामक उ ेश्य – भगवान वष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके उनके आशीवाद से जीवन को सुखमय बनाना।
सामाजक उ ेश्य – परवार और समाज म सहयोग, एकता और सकारात्मकता फैलाना।
वैज्ञानक उ ेश्य – हवन म प्रयुक्त जड़ी-बू टयाँ और घी वातावरण को शुद्ध करते ह, जससे स्वास्थ्य लाभ होता है।
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लक्ष्मी नारायण यज्ञ करने से धन-धान्य, सुख-समृद्ध, पारवारक शांत और आध्यात्मक उन्नत प्राप्त होती है।
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इसका मुख्य उ ेश्य है – जीवन को समृद्ध और पवत्र बनाना तथा ईश्वर क कृपा प्राप्त करना।